Reading SCERT Class 10 Hindi Solutions and दिल्ली में उनींदे Dilli Mein Uninde Summary in Hindi Malayalam before the exam can save a lot of preparation time.
Dilli Mein Uninde Summary in Malayalam Hindi
दिल्ली में उनींदे Summary in Hindi
Dilli Mein Uninde Summary in Hindi
रोज जैसा दिन है। फरवरी की शाम। हवा में ठंडक है। मैं अभी-अभी ‘स्वाति’ से साहित्य अकादमी के कुछ प्रकाशन खरीदकर इस सड़क पर पहुँची हूँ। मंदिर मार्ग पर सड़क सुनसान है। बिरला मंदिर के बाहर दो-एक ऑटो खड़े हैं।
एक से मैं पूछती हूँ- “चलना है?” “बैठिए” -वह कहता है। मैं गिरती-पड़ती अपनी किताबें सीट पर जमाती हूँ।
उसे चलने में अभी देर है। उसके शरीर की हरकत में एक अजीब-सी थकान है। वह अपनी सीट के नीचे से निकालकर एक गंदा, उधड़ा, आधी बाँह का भूरा स्वेटर
पहन रहा है। धीरे-धीरे। अभी मेरा ध्यान उसके चेहरे की तरफ़ नहीं गया। उसे मैं बाद में देखूँगी। ऑटो के ड्राइविंग आईने में, जिसमें उसकी आँखें और भी धँसी दिखेंगी और चेहरे की हड्डियाँ और भी उभरीं। उसके चेहरे पर भूख और बीमारी के अलावा एक और चीज़ भी दिखेगी। अभी मुझे उसका नाम नहीं मालूम । आने वाले दिनों में मैं उसके लिए बिलकुल सटीक शब्द ढूँढ़ पाऊँगी। लेकिन अभी नहीं। यह बाद में होगा।
वह चलता है। ऑटो चलते ही उसकी खाँसी शुरू हो जाती है। मालूम नहीं, उसे ठंड लग रही है या हम ट्रैफ़िक की दमघोंटू के बीचों-बीच आ गए हैं। हमने दो मोड़ पार
कर लिए हैं, लेकिन न उसकी खाँसी रुकती है, न उसका ऑटो। इसके बाद ही मैं उसका चेहरा देखती हूँ। ड्राइविंग आईने में।
“यह खाँसी कब से है?” मैं पीछे बैठी पूछती हूँ। “होगी कोई दस-बारह साल से ।”
“किसी डॉक्टर को नहीं दिखाया?”
“पैसा भी तो चाहिए, उसके लिए !”
हमारी बातचीत टूट जाती है। सड़क के दोनों ओर ट्रैफ़िक जा रहा है। सारी दुनिया कार्य-व्यापार में लगी है। रुपए का सिक्का सबको दौड़ा रहा है। किसीके हिस्से में कम, किसीके हिस्से में ज़्यादा… उसका दम फिर फूल रहा है।
“आप दिल्ली कब आए थे?” “1979 में घर कहाँ है आपका?”
“यही है।” वह मुझे ऑटो के आईने में से देखता है। ज्यों घर आए मेहमान को देख रहा हो।
“आपका मतलब है, आप तब से सड़क पर ही हैं?”
“हाँ।”
यानी उसे बिना सोए चौदह साल बीत गए! मैं यह तो बता सकती हूँ, कि वह गरीब है, कि उसके पास पूरे कपड़े नहीं हैं, कि वह किसी भी ऐसे व्यक्ति जैसा लगता है जो फ़ाके का अभ्यस्त हो। लेकिन बेघर? बेघर तो वह कहीं से नहीं लगता।
“आपका मतलब, आप इस तीन फीट लंबी पिछली सीट पर सोते हैं?”
“हाँ ।”
“और आपकी चीजें ?”
“उनपर आप बैठी हैं…”
वह बताता है कि जिस सीट पर मैं बैठी हूँ, उसके नीचे उसका बक्सा है, जिसमें एक कम्बल है, एक जोड़ी कपड़े हैं और एक कटोरा है। कटोरा पानी पीने के काम भी आता है और खाना रखने के भी।
“आप खाना कहाँ खाते हैं ?”
“किसी भी ढाबे में।”
“और बाथरूम के लिए ?”
“पब्लिक शौचालय है। नहा में कहीं भी लेता हूँ। सड़क के किनारे किसी भी नल पर। अकसर पंचकुइयाँ रोड पर नहाता हूँ । इतवार के दिन। वह जगह ठीक है। वहाँ मेरे जैसे कई लोग आते हैं…”
मेरा घर आ गया है। उसका मीटर देखती हूँ, तो शक होता है, कि रास्ते में कहीं अटक तो नहीं गया था। उससे पूछती हूँ, “आपका मीटर ठीक तो है न?”
वह कहता है, “जी, बिलकुल ठीक। पिछले छह साल से एक पैसे का फ़र्क नहीं ।”
उतरते-उतरते उससे पूछती हूँ, “सुनिए, क्या हम कल किसी समय मिल सकते हैं?”
“क्यों?” वह जानना चाहता है।
“मैं आपके बारे में सब जानना चाहती हूँ।”
“उससे कुछ होगा?” “क्या?” “क्या? उसके बाद सरकार मेरे लिए कुछ करेगी?”
“यह तो कह नहीं सकती। लेकिन अगर आप बात करने के लिए हाँ करें, तो कम-से-कम आम लोगों को आपके जीवन के बारे में पता चलेगा ।”
“और आपको क्या मिलेगा ?”
“मैं अपना काम कर रही होऊँगी। मैं रेडियो के लिए प्रोग्राम बना रही हूँ…”
“ठीक है। मैं सब समझ रहा हूँ।
आपके पास भी कोई ताकत नहीं है। आप भी मेरे जैसी हैं। मैं रोड पर सवारी ढूँढ़ता हूँ, और आप कहानी… अगर मेरी कहानी सुनने से आपका काम होता है तो मैं आ जाऊँगा ।”
“कितने बजे ?”
“सुबह दस बजे ?”
“बहुत अच्छा।”
अगले दिन वह आता है। मेरे घर। करीब साढ़े पाँच फीट ऊँची उसकी दुबली काया बड़े कमरे के दरवाज़े पर ही सिकुड़ जाती है। वह सोफ़ा पर नहीं, फर्श पर बैठ जाता है-
“मुझे यहीं बैठा रहने दीजिए। मैं आपका सोफ़ा गंदा नहीं करना चाहता।”
मैं कल की अपनी जान पहचान के नाते उसे दोस्ताना मुसकान देती हूँ। उसके शरीर में, चेहरे पर, हाथ-पाँव में इतनी सारी नीली रगें हैं- मैंने पहले नहीं देखा था। वह बैठता है, तो जैसे सारी भूख-प्यास उसके साथ बैठ जाती है।
“कुछ चाय वगैरह लेंगे ?”
वह कुछ झिझकता, कुछ शर्माता है।
सैंडी मेरे हारवर्ड के दिनों का साथी, अपना टेपरिकॉर्डर लगा रहा है।
लैटिन अमरीका के देशों के बाद यह पहला मौका है, जब उसका वास्ता तीसरी दुनिया के देश की गरीबी से पड़ रहा है। हम भारत में अमेरिका के नेशनल पब्लिक रेडियो के लिए ‘अन्न और भूख’ भंखला के प्रोग्राम बना रहे थे कि मुझे यह ऑटो ड्राइवर टकरा गया।
अब हम उसकी नींद के बारे में जानना चाहते हैं। असंभव नींद के बारे में…
मैं चाय बना लाती हूँ ताकि हम शुरुआती अटपटेपन में से निकल सकें।
“नाम क्या है आपका?”
” राजा राम ।”
“घर कहाँ है?”
“उन्नाव, यू.पी. में ।”
“ऑटो चलाना कैसे शुरू किया?”
“पहले आठ साल तक तो रिक्शा चलाता रहा। चाँदनी चौक में। फिर एक बहुत दयालु, अमीर आदमी से मुलाकात हो गई। डेढ़ साल मैंने उसकी सेवा की। उसे रोज़ ले जाता था। कभी एक पैसा नहीं लिया। उसने बदले में मुझे यह पुराना ऑटो ले दिया, जिसे अब चलाता हूँ।’’
“उससे पहले क्या करते थे?”
“गाँव में मज़दूरी करता था, खेतों में। घर हमारा बारिशों में ढह गया था। दोबारा मैं उसे बनवा नहीं पाया। भुखमरी थी। एक दिन मैंने तय किया कि दिल्ली चलें…”
“गाँव में कोई ज़मीन नहीं थी?”
“नहीं, हमारे पास कभी जमीन नहीं रही, पुश्तों में। मेरा बाप अंधा हो गया था, जब मैं चौदह-पंद्रह बरस का था। और गाँव में मुझे कोई काम नहीं मिलता था। कोई दूसरा चारा नहीं था ।”
“लेकिन दिल्ली ही क्यों आना चाहते थे?”
“गाँव में मैं सिर पर बोझा ढोता था। और एक रात मैंने सोचा, मेरे सिर पर छत तो वैसे भी नहीं है। क्या फ़र्क पड़ता है, कि मैं गाँव के खुले में सोऊँ या दिल्ली की सड़क पर? सो पहले मैं कानपुर गया, फिर वहाँ से दिल्ली ।”
“अब खुश हैं यहाँ पर ?”
“पेट भरने आया था। मुझे खुशी है कि वह भर लेता हूँ। और ऑटो चलाता हूँ। सिर पर बोझ उठाने से तो अच्छा ही है। नहीं?”
मुझे नहीं मालूम, बोझा ढोते हुए यह संसार कैसा दीखता है, सड़क पर सोते हुए कैसा, ऑटो में रहते हुए कैसा। मेरे पास उसके प्रश्न का कोई उत्तर नहीं ।
“ऑटो चलाते हुए कैसा लगता है?”
“ऑटो बड़ी मुश्किल सवारी है। सारा वक्त खड़-खड़ करती है। जवान ड्राइवरों के लिए तो ठीक है, मेरे जैसों के लिए नहीं। आपको पता है, ऑटो चलाते हुए कोई मर भी सकता है? और फिर सब तरफ़ से धुआँ। मुझे तो तब अच्छा लगता है, जब कोई ग्राहक किसी खुली तरफ़ जा रहा हो…”
“आपकी यह खाँसी… क्या धुएँ के कारण ?”
“पता नहीं, किस कारण। शायद भगवान की सज़ा हो! मैं तो बस यही जानता हूँ कि मैं जब धुएँ में साँस लेता हूँ, तो मेरा भीतर तक सिकुड़ जाता है।”
“उम्र क्या होगी आपकी?”
“क्या पता! शायद पचास साल । बस इतना याद है, कि सन् ’62 में में पाँचवीं में पढ़ता था। और स्कूल जाना मैंने 8 साल की उम्र से शुरू किया था…”
मैं हिसाब लगाती हूँ। मेरे हिसाब से उसे चालीस के ऊपर नहीं होना चाहिए। तब क्या उसकी थकान के सब साल उसमें जुड़ गए हैं?
“आपके लिए एक अच्छा दिन क्या होता है?”
अच्छा दिन कहते ही मेरे मुँह में पानी भर आता है। वर्षा में धुले हरे पत्ते, भीगी-भीगी हवा, अधगीली सड़कें- सब आँखों के सामने घूम जाते हैं।
“मुझे नहीं मालूम, अच्छा दिन क्या होता है। दो वक्त की रोटी मिल जाए गनीमत है।”
यह मेरा पहला पाठ है। हम एक ही शहर में रहते हुए दो अलग-अलग मौसमों में रहते हैं । अन्न और भूख के मौसम में । घर और बेघरी के मौसम में ।
Dilli Mein Uninde Summary in Malayalam
दिल्ली में उनींदे Summary in Malayalam
ഫെബ്രുവരി മാസത്തിലെ തണുത്ത കാറ്റുള്ള ഒരു വൈകുന്നേരം ലേഖിക കുറച്ചു പ്രസിദ്ധീകരണങ്ങളും വാങ്ങി ബിർളാ മന്ദിറിനടുത്തുനിന്ന് ഒരു ഓട്ടോറിക്ഷയിൽ കയറി. ഓട്ടോക്കാരനെ ശ്രദ്ധിച്ചപ്പോൾ അയാൾ ഒരു അസുഖക്കാരനും, ദരിദ്രനും ആണെന്ന് മനസ്സിലായി. ഇടയ്ക്കിടെ അയാൾ ചുമക്കുന്നുണ്ടായിരുന്നു. ചുമ തുടങ്ങിയിട്ട് പത്തു പന്ത്രണ്ടു വർഷമായ്….. പണമില്ലാത്തതി നാൽ ചികിത്സക്ക് ശ്രമിച്ചില്ല. ലേഖിക യാത്രയ്ക്കിടയിൽ അയാളെക്കുറിച്ച് ചില കാര്യങ്ങൾ ചോദിച്ചറിയുന്നു. 1979 ലാണ് ഡൽഹിയിൽ വന്നത്. സ്വന്തമായി വീടില്ല. ഓട്ടോറിക്ഷയിൽ തന്നെയാണ് ഉറക്കം. അത്യാവശ്യം വേണ്ട സാധനങ്ങൾ സൂക്ഷിക്കു ന്നതും അതിന്റെ സീറ്റിനടിയിൽ. പൊതു ശൗചാലയം ഉപയോ ഗിക്കും.
ഈ ഓട്ടോറിക്ഷാക്കാരനെക്കുറിച്ച് ലേഖികയ്ക്ക് കുടുതൽ അറിഞ്ഞാൽ കൊള്ളാമെന്നുണ്ട്. ഓട്ടോയിൽ നിന്നിറങ്ങുമ്പോൾ നാളെ ഒന്നുകൂടി കാണാൻ സാധിക്കുമോ എന്ന് അയാളോട് ചോദിക്കുന്നു. പക്ഷേ തന്നെക്കുറിച്ച് എന്തിനാണ് കൂടുതൽ കാര്യങ്ങൾ മനസ്സിലാക്കുന്നതെന്ന് അയാൾക്ക് അറിയണം. താൻ റേഡിയോക്ക് വേണ്ടി പ്രോഗ്രാം ചെയ്യുന്നതുകൊണ്ടാണെന്ന് ലേഖിക പറഞ്ഞപ്പോൾ അടുത്ത ദിവസം 10 മണിക്ക് എത്താമെന്ന് അയാൾ സമ്മതിക്കുന്നു.
അടുത്ത ദിവസം കൃത്യസമയത്തുതന്നെ അയാൾ ലേഖികയുടെ വീട്ടിലെത്തി. ലേഖിക നിർദ്ദേശിച്ചിട്ടും അയാൾ സോഫയിലിരിക്കുവാൻ കൂട്ടാക്കിയില്ല. തറയിലിരുന്നു. ഹാർവാർഡ് യൂണിവേഴ്സിറ്റിയിൽ ലേഖി കയോടൊപ്പമുണ്ടായിരുന്ന സുഹൃത്ത് സാന്റി ടേപ്പ് റിക്കോർഡർ സജ്ജീകരിച്ചു.
വിശദമായ ഒരു കൂടിക്കാഴ്ച തന്നെ നടന്നു.
റിക്ഷാതൊഴിലാളിയുടെ പേര് രാജാറാം. ഉത്തർ പ്രദേശിലെ ഉന്നാവിലാണ് കുടുംബം. ചാന്ദിനി ചൗ ക്കിൽ 8 വർഷത്തോളം സൈക്കിൾ റിക്ഷ ഓടിച്ചു. ദയാലുവായ ഒരു ധനികൻ സമ്മാനിച്ചതാണ് ഇപ്പോൾ പക്കലുള്ള ഓട്ടോറിക്ഷ. അതിന് മുമ്പ് സ്വന്തം ഗ്രാമത്തിൽ ചുമട്ടുതൊഴിലാളിയായിരുന്നു. വീട് വെള്ള പ്പൊക്കത്തിൽ നശിച്ചുപോയി. പിന്നെ ഒരു വീടുണ്ടാക്കാൻ സാധിച്ചില്ല. പട്ടിണി കാരണം അവിടെ നിന്ന് ഡൽഹിയിലേക്ക് പോന്നു.
കൃത്യമായ പ്രായം ഓർമ്മയില്ലെങ്കിലും 1962 ൽ 5-ാം ക്ലാസ്സിൽ പഠിച്ചിരുന്നുവെന്നും 8-ാമത്തെ വയസ്സി ലാണ് സ്കൂളിൽ പോകുവാൻ തുടങ്ങിയതെന്നും ഓർമ്മയുണ്ട്.
ലേഖികയുടെ കണക്കുകൂട്ടലിൽ 40 വയസ്സിൽ കൂടുവാൻ സാധ്യതയില്ല.
നല്ല ദിവസം എന്നത് അയാളുടെ ജീവിതത്തിലേ ഇല്ല. രണ്ടുനേരത്തെ ഭക്ഷണത്തിനുള്ളത് സമ്പാദി
ക്കണം അത്രമാത്രം.
ഈ ഓട്ടോ തൊഴിലാളിയുമായി സംവദിച്ചപ്പോൾ ലേഖികയ്ക്ക് ഒരു കാര്യം ബോധ്യമായി
അവർ ഒരേ പട്ടണത്തിൽ 2 അവസ്ഥകളിൽ ജീവിക്കുന്നവരാണെന്ന്. ഒന്ന് ആഹാരവും, വിശപ്പും എന്ന അവസ്ഥ. മറ്റൊന്ന് വീടുള്ളവനും ഇല്ലാത്തവനും എന്നത്.
दिल्ली में उनींदे लेखक परिचय गगन गिल
गगन गिल का जन्म 19 नवंबर 1959 नई दिल्ली में हुआ। ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ ‘अंधेरे में बुद्ध’, ‘में जब तक आई बाहर’, ‘दिल्ली में उनींदे’, ‘अवाक्’ आदि प्रमुख कृतियाँ हैं। वे भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित हैं।
दिल्ली में उनींदे शब्दाथ
- उनींदे – ഉറക്കമില്ലാത്തവർ
- रोज़ – प्रतिदिन, daily
- सुनसान – शून्य
- जमाना – സൂക്ഷിച്ചുവയ്ക്കുക
- हरकत – चेष्टा, movement
- अजीब – विचित्र
- थकान – ക്ഷീണം
- गंदा – मैला, dirty
- उधड़ा – फटा हुआ, കീറിയ
- आधी बाँह का – Half sleeve
- भूरा – brown
- आईना – mirror
- धँसी आँखें – കുഴിഞ്ഞ കണ്ണുകൾ
- सटीक – उचित, appropriate
- खाँसी – ചുമ, cough
- ट्रैफ़िक की दमघोंटू – ഗതാഗതക്കുരുക്ക്, traffic jam
- मोड़ – വളവ്, curve
- हिस्सा – part
- ज़्यादा – अधिक
- दम फूलना – ശ്വാസം മുട്ടുക,to be out of breath
- मेहमान – अतिथि
- यानी – अर्थात्, അതായത്
- बिना सोए – ഉറങ്ങാതെ
- फाका – പട്ടിണി, starvation
- बेघर – बिना घर का, വീടില്ലാത്ത homeless
- तीन फीट लंबी – മൂന്നടി നീളമുള്ള
- कटोरा – പാത്രം, bowl
- ढाबा – छोटा सा भोजनालय, ചായക്കട
- नल – water tap
- इतवार – sunday
- शक – शंका, doubt
- अटकना – रुकना
- फर्क – अंतर, വ്യത്യാസം
- आम लोग – जनसाधारण
- करीब – लगभग, ഏകദേശം
- दुबली काया – മെലിഞ്ഞ ശരീരം
- जान पहचान के नाते – പരിചയത്തിൻ്റെ പേരിൽ
- दोस्ताना – friendly
- झिझकना – हिचकना, to hesitate
- वगैरह – आदि, etc
- मौका – अवसर
- श्रृंखला – പരമ്പര
- टकरा जाना – मिल जाना (इस प्रसंग में) കണ്ടുമുട്ടുക
- असंभव – impossible
- अटपटापन – അസ്വസ്ഥത
- मुलाकात – भेंट, കണ്ടുമുട്ടൽ
- डेढ़ साल – ½ വർഷം
- मज़दूरी – श्रम
- ढह गया – തകർന്നുപോയി
- भुखमरी – भूखों मरने की स्थिति, വിശന്നുവലഞ്ഞ അവസ്ഥ
- पुश्त – परंपरा
- दोबारा – फिर, again
- चारा – आश्रय
- बोझा ढोना – ഭാരം ചുമക്കുക
- छत – roof
- फर्क – अंतर
- खुले में सोना – തുറസ്സായ സ്ഥലത്ത് ഉറങ്ങുക
- सो – इसलिए
- ग्राहक – customer
- सज़ा – दंड
- शायद – ഒരുപക്ഷേ
- हिसाब लगाना – കണക്കുകൂട്ടുക
- वर्षा में धुले – മഴയിൽ നനഞ്ഞ
- भीगी – നനഞ്ഞ
- अधगीला – പകുതി നനഞ്ഞ
- गनीमत – खुशी की बात